Text to speech
Medium | 24.11.2025 07:41
हवेली की पुरानी दीवारों पर साँझ की धूप जम-सी गई थी। आर्यन उस रोज़ पहली बार अपने पिता के कमरे में ऐसे दाख़िल हुआ था जैसे कोई सच्चाई उसे अपनी ओर खींच रही हो। उसके हाथ काँप रहे थे, आँखों में सवालों का सैलाब था। वह ठहरते-ठहरते बोला—
“पापा… ये सब क्या है? ये वसीयत, ये ‘पाप का बोझ’… और इसे मुझे ही क्यों उठाना होगा?”
उसके पिता चुप थे, जैसे उम्र की थकान उनकी साँसों में उतर आई हो। आर्यन का ग़ुस्सा अचानक फट पड़ा—
“क्या ज़रूरत थी इतना पाप करने की? थोड़ी कम दौलत में भी जिंदगी कट जाती! आपने मुझसे पूछा था क्या, जब गलतियाँ कर रहे थे?
नहीं न!
तो अब सज़ा मुझे क्यों?”
वह पल भर रुका, फिर और टूटकर बोला—
“और आप लोग तो कभी जेल नहीं गए… कोई सज़ा नहीं भुगती। तो फिर अब मेरे लिए ये नया नियम क्यों?”
उसके पिता की आँखें भर आईं। भीतर कुछ टूट चुका था।
आर्यन दरवाज़ा बन्द कर बाहर चला गया।
रात गहरी हो चुकी थी। हवेली के बगीचे में हल्की ठंडी हवा बह रही थी। आर्यन अकेला पत्थर की बेंच पर बैठा था। उसकी आँखें कहीं दूर अँधेरे में खोई हुई थीं। तभी रामदीन काका आए और उसके पास बैठ गए।
“बाबूजी…” काका ने धीमी आवाज़ में कहा, “पहले भी पाप की सज़ा होती थी… बस लोग देख नहीं पाते थे। हवेली वाले पैसे देकर किसी और को जेल भेज देते थे। जो असली अपराधी होते, वो दौलत के अंधेरे में छिपे रहते। किसी को पता भी नहीं चलता कि असल गुनाह किसने किया है।”
आर्यन के चेहरे पर हैरानी उतर आई।
“मतलब… पूरी ज़िंदगी ये छल चलता रहा?”
काका ने सिर झुका लिया।
“और इसी को खत्म करने का फ़ैसला आपके दादाजी ने किया था… अपने अंतिम दिनों में।”
सुबह की रोशनी हल्की-हल्की कमरों में उतर रही थी। अनाया—हवेली की जिम्मेदार और दृढ़-दिल लड़की—आर्यन के कमरे में धीरे से चाय लेकर आई। उसने कोशिश की कि माहौल हल्का हो जाए।
“कल तुम्हारा गुस्सा… देखने लायक था,” वह मुस्कराई।
आर्यन ने चिढ़कर उस ओर देखा।
अनाया तुरंत नरम पड़ गई—
“ठीक है, उस बात को छोड़ देते हैं। पर एक चीज़ समझ लो… दादाजी ने वसीयत मजबूरी में नहीं, समझदारी में बदली थी।”
आर्यन ने गहरी सांस लेते हुए पूछा—
“क्यों? अचानक ऐसा क्या हो गया था?”
अनाया खिड़की के पास खड़ी हो गई।
बाहर से आती हवा उसके बालों को हल्के से हिला रही थी।
“जब दादाजी बीमार पड़े… दुनिया की कोई दवा काम नहीं कर रही थी। पहली बार उन्हें लगा कि दौलत से हम दुनिया को धोखा दे सकते हैं, पर ऊपर वाले की अदालत में नहीं। उन्हें लगा कि अगर हवेली की अगली पीढ़ी भी वही रास्ता पकड़ेगी, तो एक दिन सब खत्म हो जाएगा। इसीलिए उन्होंने लिखा कि
जो वारिस बनेगा, वही पापों की सज़ा भी भुगतेगा। छुपना अब नामुमकिन होगा।”
कमरा एकदम शांत हो गया।
जैसे सच ने अपने कदमों की आहट छोड़ दी हो।
दिन बीतते गए। अनाया ने अपने हिस्से की ज़िम्मेदारियाँ और सज़ा दोनों स्वीकार कर लीं। लोग उसे तिरछी नज़रों से देखते, फुसफुसाते—
“गुनहगारों की बेटी है…”
पर अनाया कभी टूटी नहीं। वह अपने बीमार माता-पिता की सेवा करती, हवेली संभालती, और उसके भीतर एक साफ़-सी रोशनी जन्म लेने लगी—
गलतियों को मान लेने से इंसान छोटा नहीं होता;
वह अपनी ही नज़रों में ऊँचा उठता है।
उधर आर्यन…
वह सज़ा से डर गया। “लोग क्या कहेंगे” का डर उसकी रगों में ज़हर बनकर दौड़ रहा था।
वह हवेली छोड़ गया, पर अपने हिस्से की संपत्ति लेने से नहीं हिचका।
आर्यन ने इनकार किया तो उसका हिस्सा दान में चला गया।
अनाया के दिल में एक अजीब-सा सुकून उतर आया—
“अब आने वाली नस्लों को वही सवाल नहीं उठाने पड़ेंगे जो हमने झेले।”
साल गुजरते गए। अनाया के कर्मों से हवेली की हवा साफ़ होने लगी। उसके दिल पर अब कोई दाग़ नहीं था—सिर्फ़ एक सुकून भरी धूप।
लेकिन आर्यन…
वह शहर की चमक में अंधेरों वाला रास्ता पकड़ चुका था। गलत तरीकों से पैसा कमाने में उसने वही रूप ले लिया जिससे वह कभी डरता था।
और एक दिन—
उसका छोटा सा बेटा उसकी आंखों में देखते हुए पूछ बैठा
“पापा… लोग कहते हैं कि ऐसे पैसे सच्चे लोग नहीं कमाते…
क्या आपने भी… कुछ गलत किया था?”
यह वही सवाल था
जो कभी उसने अपने पिता से पूछा था।
उस पल
आर्यन के भीतर का सारा धुआँ उसकी आँखों में उतर आया।
उसे समझ आया कि गलती वही थी—
जिससे भागता रहा,
जिसे मानने की हिम्मत नहीं की,
और जिसे अनाया ने स्वीकार कर रोशनी में बदल दिया।
लेकिन अब कोई रास्ता नहीं बचा था।
न पाप धोने का,
न कहानी बदलने का।
कहानी यहीं खत्म होती है—
जहाँ धूप किसी एक दिल में उतर कर
सदियों तक रोशनी फैलाती है,
और धुआँ किसी और के भीतर
धीरे-धीरे सब कुछ ढक लेता है।